धान में लगने वाले रोगों के लिये किसान भाई अपनाये फसल चक्र व रासायनिक दवाओं का करें प्रयोग।
पीलीभीत :- किसान भाईयों धान की फसल में लगने वाले कीट/.रोगों की रोकथाम के लिये फसल की निगरानी एवं गम्भीर क्षति से बचने के लिये संक्रमण से पूर्व नियंत्रण अत्यन्त आवश्यक हैं। धान की फसल के लिये गम्भीर रूप से हानिकारक कीट/रोगों की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय निम्नवत हैं।
बैक्टीरियल पेनिकल ब्लाइट की पहचान- यह जीवाणु द्वारा फैलने वाली बीमारी है। धान के अतिरिक्त यह रोग टमाटर, मिर्च, बैगन तथा तिल की फसल में भी लगता है। यह भारत के अतिरिक्त चीन, कोरिया, फिलीपीन्स तथा पनाम आदि देशों में भी फैलती है। इस बीमारी में धान की बाली में दाने नही पड़ते है तथा बाली बादामी लाल रंग की होकर सूख जाती है। दाने का रंग बदल जाता है। इस रोग से फसल का 75 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है। प्रबन्धन एवं नियंत्रणः- रोग से बचाव के लिये फसल चक्र अपनायें। इसके नियंत्रण हेतु बुवाई से पूर्व स्ट्रेटोमाइसीन सल्फेट 90 प्रतिशत टेट्रासाइक्लीन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत 4 ग्रा0/25 कि0ग्रा0 बीज की दर से बीज शोधन अवश्य करें। स्यूडोमोनास फलोरिसेन्स 500 ग्राम 200ली पानी के घोल कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। फसल प्रभावित होने की दशा में आइसोप्रोसीलीन 40प्रतिशत ईसी 400 मि0ली0 तथा स्ट्रोप्टोमाइसीन सल्फेट 90प्रतिशत प्लस टेट्रासाइक्लीन हाइड्रोक्लोराइड 10प्रतिशत 18ग्रा0 मात्रा को 200 लीटर पानी के साथ मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। ट्राईसाइक्लाजोल 75प्रतिशत डब्लूपी 120ग्रा0/एकड़ प्लस वैलिडामाइसीन 3प्रतिशत एल 400 मि0ली0/एकड प्लस स्ट्रेप्टोमाइसीन सल्फेट 90 प्रतिशत प्लस हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत 18 ग्रा0/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी के साथ मिलाकर छिडकाव करें।
शीथ ब्लाइट- इस रोग में फसल कल्ले निकलने की अवस्था तक प्रभावित होते है। शुरूआती लक्षण निचली पत्तियों पर दिखाई पड़ते है। पत्ती पर अनियमित आकार के हरे धूसर धब्बे दिखाई पड़ते है, जिनका केन्द्र बडे होने पर धूसर-सफेद हो जाते है तथा किनारा काले भूरे अथवा बैगनी भूरे रंग का होता है। बालियां निकलने की अवस्था में रोग से गम्भीर क्षति होती है तथा दानों का भराब बहुत कम हो जाता है।
झोंका रोग- इस रोग में धान की पत्तियां पर्ण वृन्त, बाली तथा तने पर आॅख के आकार के धब्बे बन जाते है, जिनका मध्य भाग धूसर सफेद किनारे पर भूरा अथवा लाल रंग का होता हैं रोक की गम्भीर अवस्था में बालियों के निचले हिस्से में काले रंग के घेरे बन जाते है तथा बालियां दाना बनने से पूर्व ही टूटकर गिर जाती है। यदि बालियां दाना बनने के बाद प्रभावित होती है, तो तो दाना महीन अथवा नही बनता है।
प्रबंधन एवं नियंत्रण- रोग की रोकथाम के लिये समय से रोपाई एवं फसल चक्र अपनाये तथा रोग रोधी प्रजातियों का चयन करें। नाइट्रोजन की संतुलित मात्रा का प्रयोग करें। रायायनिक उपचार के लिये ट्राइसाइक्लाजोल 75प्रतिशत डब्लूपी 500ग्रा0/हे0 की दर से 150 ली0 पानी के घोल कर छिडकाव करें।
गंधी बग- यह भूरे रंग का रस चूसने वाला कीट है जो पास जाने पर तेज गंध छोडता है। इस कीट के शिशु तथा वयस्क दुग्ध अवस्था में अथवा दाना बनते समय बालियों से रस चूसते है। प्रबंधन एवं नियंत्रण- रोग की रोकथाम के लिये मौसमी खरपतवारों को नष्ट कर दंे तथा जलभराव की समस्या को दूर करें। कीट की प्राकृतिक शत्रु जैसे मकड़ी, टाइगर बीटल आदि का संरक्षण करें। दुग्ध अवस्था में फसल की सुबह अथवा सायंकाल में नियमित निगरानी करें यदि प्रत्येक 20 पौधो पर 10 गंधी बग दिखाई दे तो मैलाथियान 5प्रतिशत डस्ट 20 से 25 कि0ग्रा0/हे0 बुरकाव करें।
तना भेदक की पहचान- इस कीट का लार्वा कल्ले के निचले हिस्से को भेदकर अन्दर से खाता है जिससे यह सूख जाता है जिसे मृत गोभ कहते है। प्रबंधन एवं नियंत्रण- गर्मी की गहरी जुताई करनी चाहिये। रासायनिक नियंत्रण हेतु कार्बोफ्यूरान 3जी 25 किग्रा0/हे0 अथवा क्लोरेन्ट्रानिलिप्रोल 0.4प्रतिशत जी 10 कि0ग्रा0/हे0 की दर से नमी की अवस्था में बुरकाव करें। अधिक जानकारी के लिए जिला कृषि रक्षा अधिकारी से सम्पर्क करें।