उत्तरप्रदेश

कोल्हुओं और फेक्ट्रियो की चिमनिया उगल रही है जहरीला धुंआ प्रतिबंधित प्रदूषित पन्नियों के भण्डारण केन्द्रो से ग्रामीणों में आक्रोश, प्रदूषण विभाग बैठा आँखे मूंदे ,कट रही चांदी

दिल्ली के साथ साथ मुज़फ्फरनगर भी आ चूका है, प्रदुषण की चपेट में

खबर वाणी भगत सिंह

मुज़फ्फरनगर। केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने भले ही बढ़ रहे प्रदूषण को रोकने के जिला प्रशासन को अलर्ट कर दिया हो लेकिन दिल्ली के साथ साथ मुज़फ्फरनगर भी प्रदुषण की चपेट में आ चूका है वंही जिला प्रशासन का धयान सिर्फ किसानो द्धारा अपने खेतो में जलाई जा रही पुराली की और ही केंद्रित है। जनपद के ग्रामीण अंचलों में चल चल रहे कोल्हुओं और फैक्ट्रियों में आजकल प्रदूषण विभाग के भृस्ट अधिकारीयों और कर्मचारियों की मिली भगत के चलते जमकर प्रतिबन्धित पन्नियों और कचरे को जलाया जा रहा है जिस कारण क्षेत्र के ग्रामीण और हाईवे से सटे कई मोहल्लों में लोगों को दिन छिपने से लेकर सुबह तक साँस लेने में हो रही है भारी दिक्कत जब भी कभी परवा हवा चलती है तो यह बदबू शहर तक को अपनी चपेट में ले लेती है। ऐसा नही की सम्बंधित विभाग को इसकी जानकारी न हो जानकारी सभी अधिकारीयों और कर्मचारियों को है यहां तक की ग्रामीणों ने आरोप लगाते हुए बताया की इन अधिकारीयों और कर्मचारियों की मिली भगत इस कदर है की रात्रि में खुले आम कुछ पेपर मिलों, कोलुहों और बूरा भटियो में प्रतिबन्धित पन्नियों को जलाया जा रहा है और खुले आम पर्दूषण फेलाकर गांव से लेकर शहर तक में तरह तरह की बीमारियां फैला रहे है।

फैक्ट्री के बाहर लगा पड़ा पिन्नियों का ढेर

बता दें जनपद के अधिकतर कोल्हुओं की भट्टिया को गन्ने की खोई या लकड़ियों से न जलाकर उन्हें पेपर मिलो के बॉयलर से रीसायकल होकर निकलने वाली पन्नियों के स्क्रेप के साथ प्लास्टिक और रबड़ के जूते चप्पलो के स्क्रेप से जलाया जा रहा है। वंही कोल्हुओं और फेक्ट्रियो की चिमनियों से निकलने वाले जहरीले धुंए से ग्रामीण विभिन्न बीमारियों के फैलने से चिंतित होने लगे है। तो वहीं कोल्हू मालिक कोल्हू की भट्टियों में जलने वाली गन्ने की खोई पेपर मिलो में अच्छे दामों पर बिक्री कर मोटा मुनाफा कमाने में लगे है। और अपनी भट्टियों में प्लास्टिक का कचरा फूंक कर अपना मोटा मुनाफा कर क्षेत्रवासियो को जहरीला वायु प्रदूषण भी परोस रहे है इतना ही नहीं जनपद के ग्रामीण क्षेत्रो से बहने वाला नाला भी फेक्ट्रियो से निकलने वाले रासायनिक जल से बह रहा है। खेतो में पुराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण की वजह से सरकार ने किसानो को सख्त हिदायत देते हुये जुर्माना भी वसूल किया है। लेकिन जनपद में स्थित औद्योगिक इकाइयो और कोल्हुओं की चिमनियों से निकलने वाले जहरीले धुएं से होने वाले प्रदूषण पर अभी तक रोक नहीं लगाई गई है इतना ही नहीं इन ओधोगिक इकाइयो से रासायनिक जल दिन ढलते ही क्षेत्रो में बहने वाले नालो में छोड़ दिया जाता है। जिससे ग्रामीण क्षेत्रो में रहने वाले परिवारों को दुर्गन्ध ही नहीं बल्कि उनके घरों और सरकारी नलों का पानी भी दूषित हो चूका है।

साथ ही साथ अनेक गंभीर बीमारियों का भी लोगों को सामना करना पड़ता है लेकिन प्रदूषण विभाग आज तक जनपद को प्रदूषण मुक्त नहीं करा पाया है अब क्षेत्रीय किसान और समाज सेवी ऍन जी टी को अपनी गुहार लगाने के मूड में दिखाई दे रहे है और जनपद के आलाधिकारियो सहित सम्बंधित विभाग के भृस्ट अधिकारीयों और कर्मचारियों की शिकायत भी करने की बात कह रहे हैं। शहर में आजकल गुड़ का व्यापार चरम सीमा पर है एशिया की सबसे बड़ी कहलाई जाने वाली गुड़ मंडी में जनपद मुज़फ्फरनगर से ही नहीं बल्कि पडोसी जनपदों के व्यापारी भी गुड़ का व्यापर करने जनपद में आते है। लेकिन मुज़फ्फरनगर के ग्रामीण अंचलो में आजकल गुड़ बनाने वाले कोल्हुओं ने अपने पैर पसार लिए है जगह जगह छोटे उधोग के रूप में कोल्हू व्यापारी गन्ना किसानो से 190 से 220 रूपये प्रति क्विंटल गन्ना खरीदकर गुड़ बनाने का कार्य कर रहे है और खुद ही उन्हें अच्छे दामों में पैकिंग कर बाहर भेज रहे साथ ही साथ मण्डी शुल्क और प्रदेश सरकार को चूना लगा रहे हैं। वंही गन्ने से निकलने वाली खोई को यह कोल्हू मालिक जनपद की पेपर मिलो में 190 रूपये क्विंटल की दर से बेच रहे है पेपर मिल कोल्हुओं से निकलने वाली इस खोई से पेपर निर्माण का कार्य कर रहे है। सबसे बड़ी बात ये है की ग्रामीण अंचलो के साथ साथ राष्ट्रीय राजमार्गो के किनारे भी कोल्हू व्यवसाय अपनी चरम सीमा पर है लेकिन ये किसी अधिकारी को दिखाई नही देते।

जिले के भोपा रोड, हाईवे पर स्थित एक बुरा भट्टी, शेरनगर गांव के निकट चल रहे आज़म के कोल्हू में धड़्डले से प्रतिबंधित पन्नी और रबड़ के जूते चप्पलो को कोल्हू की भट्टियों में झोंककर पुरे वातावरण को दूषित किया जा रहा है। अधिकतर कोल्हू मालिक पेपर मिल बॉयलर से निकलने वाली पन्नियों को कोल्हुओं और बूरा की भट्टी में ईंधन के रूप में प्रयोग कर जहरीला वायु प्रदूषण फैला रहे है। जबकि प्रदूषण विभाग की सख्त हिदायत है की कोल्हू मालिक कोल्हुओं की भट्टियों में प्रतिबंधित पन्नियों को ईंधन के रूप में इस्तेमाल न करके गन्ने से निकलने वाली खोई और सुखी पत्तियों का ईंधन के रूप में प्रयोग करे, लेकिन अधिक मुनाफा व बचत के उदेश्य से कोल्हू मालिक खोई और सुखी पत्तियों न करके पन्नियों को ईंधन के रूप में प्रयोग में ला रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रो में जानसठ रोड,भोपा रोड,जोली रोड,हो या फिर अन्य एरिया आज प्रतिबंधित पन्नियों का भण्डारण केंद्र के नाम से जाना जाने लगा है। इन क्षेत्रो में दबंग पन्नी माफियाओ द्धारा किसानो के खेत हो या बड़े बड़े गोदाम किराये पर लेकर पेपर मिलो से निकलने वाली प्रतिबंधित प्रदूषित गिल्ली पन्नियों को बड़े बड़े ट्रालों में भरकर भण्डारण केन्द्रो पर लेजाकर खुले में सुखाने के लिए छोड़ देते है। और यही पन्नी सूखने के बाद फेक्ट्रियो और कोल्हुओं में सप्लाई की जाती है जिसे कोल्हू मालिक को सस्ते ईंधन के रूप में पन्निया मिल जाती है और कोल्हू मालिक भी प्रदुषण विभाग की कुम्भकरणी नींद का फायदा उठाकर धड़्डले से कोल्हुओं की भट्टी में पन्निया झोंककर मोटा मुनाफा कमा रहा है। जबकि कुछ दिन पूर्व क्षेत्र के सैंकड़ो ग्रामीणों ने समाजसेवी संस्था प्रदुषण नियंत्रण समिति के तत्वाधान में प्रतिबंधित पन्नियों का विरोध करते हुये जॉली रोड पर स्थित दिशा पेपर मिल से निकलने वाले गिल्ली पन्नी से लबालब भरे ट्रेक्टर ट्राला को सड़क पर रोककर कब्ज़ा कर लिया लेकिन क्षेत्र के गाँव धंधेड़ा निवासी दबंग ठेकेदार नदीम और उसके समर्थको ने ग्रामीणों को धमकिया देते हुये ट्रेक्टर ट्रोले को कब्ज़ा मुक्त कराकर फरार हो गये है। हालांकि मौके पर पंहुची पुलिस को सिर्फ सैंकड़ो ग्रामीणों की भीड़ मिली वंही दबंग ठेकेदार मौके से फरार हो गया ग्रामीणों द्धारा दबंग ठेकेदार और उसके समर्थको के खिलाफ थाना सिखेड़ा में शिकायती प्रार्थना पत्र देकर कार्यवाही की मांग की है।

वंही ग्रामीणों द्धारा प्रदुषण विभाग को भी कार्यवाही करने की मांग की लेकिन न ही पुलिस ही उस दबंगई का कुछ बिगाड़ पायी और न ही प्रदुषण विभाग इस पन्नी कारोबार को बंद करा पाया। वंही ओधोगिक इकाइयों का भी ये ही हाल है। जिले में अधिकतर मालिकों ने अपनी फेक्ट्रियो से निकलने वाले जहरीले धुवे को मानकों के अनुसार ऊंचाई पर लगाई गयी चिमनियों के माध्यम से नियंत्रित किया है। तो कंही बड़ी इकाइयो में भी मिल की भट्टी में प्रतिबंधित पन्नियों को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है इतना ही नहीं शहर में ज्यादातर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट न होने के कारन फेक्ट्रियो से निकलने वाले रासायनिक जल को सीधा पाइपों के माध्यम से नालो में छोड़ दिया जाता है। जिससे आसपास के ग्रामीण लोग इस रासायनिक जल की दुर्गन्ध से परेशान ही नहीं होते बल्कि भयानक बीमारियों का भी शिकार होते है। जिले की औद्योगिक इन्काइयों में जलकर निकलने वाली काली राखी के हवा में उड़ने से किसानो की फसल भी नष्ट हो रही है। शहर में प्रदूषण विभाग भी इस बात को स्वीकार कर रहा है की प्रतिबधित पन्नियों को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किये जाने को लेकर समय समय पर छापा मारी अभियान भी चलाया जाता है। और जंहा पर इस तरह की अनियमिता पायी जाती है चाहे वह कोल्हू मालिक हो या फैक्ट्री मालिक जुर्माने की रकम भी प्रदूषण विभाग द्धारा वसूली जाती है या अपना फील गुड़ किया जाता है। अगर प्रदूषण विभाग की माने तो विभाग का यह भी कहना है की प्रतिबंधित पन्नियों से वायु में अधिक प्रदूषण फैलता है इस लिए पन्नियों को ईंधन के रूप में प्रयोग करने पर सख्ती से केंद्र और प्रदेश सरकार ने रोक लगाई है। जबकि ईंधन के रूप में यदि गन्ने की खोई या सुखी पत्तियों का प्रयोग किया जाये तो प्रदूषण की मात्रा में अधिकतर कमी आ जाती है। जिले में फेक्ट्रियो से निकलने वाले रासायनिक जल के लिए फैक्ट्री मालिकों को वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाने की सख्त हिदायत दी गई है जिसके चलते काफी फेक्ट्रियो में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट शुरू हो चूका है और कुछ फेक्ट्रियो में लगाया जा रहा है। लेकिन भोपा रोड पर बिजली घर के सामने और जानसठ रोड पर बिजली घर के सामने दिन और रात में किसी भी समय धुआं ही धुँआ दिखाई देगा अब देखना होगा की क्या जिले के आलाधिकारी व ऍनजीटी के अधिकारी इस तरफ कोई ध्यान देंगे या जिले में ऐसे ही प्रदूषण होता रहेगा।

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