उत्तरप्रदेश

गांव हो या शहर हर तरफ पॉलिथीन का कहर

खबर वाणी भगत सिंह

मुज़फ्फरनगर। तमाम कोशिशों के बाद भी नही रुक रहा प्रचलन, जहां शहरी क्षेत्रों में सड़कों पर पड़ी देखीं जा सकती है तो वहीं ग्रामीण क्षत्रों में खुली औद्योगिक इकाइयों से निकली कचरे रूपी पॉलिथीन को महिलाएं बीनती देखीं जा सकती है जिसके बाद दोबारा ये फैक्ट्रियों, कोल्हुओं , गुलदना बनाने वाली भट्टियों आदि में जलाकर फैलाया जा रहा है पर्दूषण लेकिन सम्बंधित विभाग के कानो पर जूं नही रेंग रही।जी हाँ ये ही कड़वा सच है अपने जनपद मु0 नगर का जिसे दिल्ली ऍन सी आर का दर्जा तो मिले काफी समय हो गया लेकिन यहां दिल्ली जैसी मूल भूत सुविधाएँ और कानूनी कार्यवाही धरातल पर उतरती दिखाई नही दे रही हैं।
जबकि देश के प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी से लेकर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ तक जनता को पॉलिथीन के उपयोग न करने के लिए जागरूक तक कर चुके है और जनता से जूट,कपड़े आदि से बने थैलों को प्रयोग में लाने की भी बात कह चुके हैं।लेकिन जितनी गलती इन पॉलिथीन बनाने वालों की है उतनी ही गलती इन्हें प्रयोग करने वालों की भी नजर आ रही है अगर हम लोग जागरूक बने और अपने अपने घरों से कपड़े ,जूट आदि से बने थैलों को लेकर चले और दुकानदार से पॉलिथीन न देने पर जोर दे तो सम्भवत इसमें कमी आएगी।

अब प्रदूषण को लेकर बड़ा सवाल

अक्सर आपने पॉलिथीन सड़कों ,कूड़े के ढेरों पर ही पड़ी देखी होगी जिसे आवारा पशु चबाते, खाते नजर आ जायेंगे लेकिन आज हम आपको मज़बूरी और मजदूरी दोनों को दिखाते है की आखिर मज़बूरी में कैसे इन गन्दगी में मजदूरी और अपने पापी पेट के लिए बिना हाथों में दस्तानो, आदि के गांव की महिलाएं इन्हें बीनती हैं जिसके बाद ये पॉलीथिन उन बड़ी बड़ी ओधोगिक इकाइयों में जाकर जलाई जाती है जिससे प्रदूषण के साथ ही क्षेत्र की आबो हवाएँ भी दूषित हो रही है ।

एक सर्वे के तहत हमे पता चला है की जनपद में भोपा रोड, जोली रोड, जानसठ रोड, आदि जगहों पर बाकायदा बड़े बड़े ठेकेदार इस कार्य में लगे है जो इस पॉलीथिन के कचरों को फैक्ट्री(पेपर मिलों) से लेकर गांव के जंगलों, मुख्य सड़कों के किनारे, घेर और अपने घरों तक में इन्हें फैलवाकर ग्रामीण महिलाओं को रुपये 200, 300 की दिहाड़ी का लालच देकर इसमें से लोहा,प्लास्टिक,आदि निकलवाकर जहां अलग कराते है वहीं इस घातक पॉलिथीन को सुखवाकर दोबारा से फैक्ट्रियों, कोल्हुओं, एंव बुरा भट्टियों, को बेच रहे हैं।जब यह पॉलिथीन वहां जलाई जाती है तो क्षेत्र के साथ ही दूरस्थ इलाकों की भी आबो हवाएँ खराब होती है लेकिन यहां एक बड़ा सवाल ये भी है की ऍन जी टी के सख्त आदेश के बाद भी स्थानीय प्रदूषण विभाग के कानो पर जूं नही रेंगती या यूँ कहें की विभागीय कुम्भकर्ण भी इस धन्दे में शामिल है।

प्लास्टिक में अपनी रोजी रोटी के लिए काम करती महिलाएं

जो जो महिलाएं मज़बूरी और मजदूरी के चलते इस कार्य में लगी है उनके स्वास्थ्य के प्रति भी ठेकेदार कुछ नही सोचते न उन्हें दस्ताने दिए जाते है और न बचाव के ही कुछ उपाय यदि किसी कारण इस पॉलिथीन में आग लग जाये तो शायद अंजाम बहुत बुरा और दुखदाई भी हो सकता है।इस मामले में दमकल विभाग से लेकर जिले के आलाधिकारियों को भी इस तरफ ध्यान देने की जरूरत है।स्थानीय ग्रामीण दबी जबान से कहते है की गांव हो या शहर हर जगह पॉलिथीन का कहर ,बातें सब करते हैं लेकिन कार्यवाही कोई नही करता क्योकिं इन ठेकेदारों द्वारा हर विभाग में सेटिंग गैटिंग का खेल जो है ग्रामीणों का कहना है की क्या योगी सरकार और देश के प्रधान मंत्री द्वारा चलाया जा रहा अभियान स्वछ भारत मिशन अभियान पॉलीथिन मुक्त हो पायेगा या नही।

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