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मर्ज़ बढ़ता ही गया ज्योँ ज्योँ दवा की…???, सरकारी अस्पताल में जमीन पर तडप रहे मरीज

पैसे लेकर होती है खून की जांच व तभी लगती है ग्लूकोज

खबर वाणी काज़ी अमजद अली

मुज़फ्फरनगर। मरीज़ ए इश्क पर महर खुदा की मर्ज़ बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की, लापरवाही और भृष्टाचार को अगर संरक्षण मिल जाये तो फिर अव्यवस्था के ठीक होने की उम्मीद क्या कीजिये। दिन प्रतिदिन सरकारी तन्त्र में बढ़ती लापरवाही माहौल को नकारात्मक कर रही है। बात स्वास्थ्य विभाग की करें तो आम नागरिकों को मुफ्त चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के दावों की पोल सरकारी अस्पतालों में जारी अव्यवस्थाएं खोल रही है।

इलाज के नाम पर खानापूर्ति करनेवालों को मरीजों की कोई परवाह नजर नहीं आती है। सेवा के नाम पर प्रत्येक माह सेलरी प्राप्त करने वाले मानवता धर्म भी भूल बैठे हैं। मरीजों के साथ दुर्व्यवहार के कारण मरीज जमीन पर लेटकर तडपने को मजबूर हैं।

मुज़फ्फरनगर। जिले के प्रार्थमिक स्वास्थ्य केन्द्र मोरना हो या सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र भोपा या क्षेत्र के अन्य प्राथमिक केन्द्र सभी अव्यवस्था व बदहाली की दास्तान बने हुए हैं। मरीजों के इलाज के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है। शुक्रवार को मोरना स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर पहुंची गर्भवती महिला ने बताया कि मोरना गांव में तैनात आशा के पास वह लगातार चक्कर काट रही है। आशा अस्पताल में आने के लिए कहती हैं किन्तु अस्पताल में भी कोई उसकी नहीं सुन रहा है। एक अन्य महिला ने बताया कि उसे गर्भाशय का ऑपरेशन कराना है और वह पिछले एक सप्ताह से अस्पताल के चक्कर काट रही है। मीटिंग की बात बताकर अगले दिन आने के लिए कहा जाता है। वहीं अस्पताल में बैड की सुविधा होने के बावजूद कमरों में ताले जड दिये गये हैं। जिससे अस्पताल में इलाज कराने आये मरीज जमीन पर लेटकर तडप रहे हैं।

 

◆काबिल हैं, पर कोहिनूर हैं………..!!! ????

सरकारी अस्पताल में काबिल डॉक्टर्स होने के बावजूद आम आदमी गली मौहल्ले के झोलाझाप डॉक्टर्स से इलाज करा रहा है। सरकारी अस्पताल की मुफ्त सुविधा उसे क्यों अच्छी नहीं लगती। ये अपने आप में बडा सवाल है। सरकारी अस्पताल की कल्पना ही लापरवाही व दुर्दशा की तस्वीर बना देती है और उस कल्पना को हकीकत का अमलीजामा पहनाने वाले वहां तैनात स्टाफ हैं, जिसे सेवा के नाम पर सेलरी तो चाहिए किन्तु सेवा किस प्रकार की है, ये स्वयं अधिकारी भी जानते हैं। फिर सबकुछ जानने के बावजूद प्रशासन व शासन की चुप्पी भी उन्हें सवालों के घेरे में खडी कर रही है।

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